Kalavantin Durg – दोस्तों मेरी इस वेबसाइट में आप को बहोत सारे न जाने या पहेचाने जानी वाली जगहों के बारे में जानकारी मिलती आयी है।
आज हम और एक अच्छी जगह के बारे में बात करेंगे। जिसे आप में से ज्यादातर लोग नहीं जानते होंगे।
इस आर्टिकल में हम कलवंतिन दुर्ग की बात करेंगे जो साहसिक लोगों के लिए एक बार जरूर से जाने लायक जगहों में से एक है।
आज हम एक ऐसे दुर्ग की बात करेंगे जो दुनिया के सबसे खतरनाक चढाई वाले किलों में से एक है।
और इसी कारण इस दुर्ग की चढाई बहोत ही रोमांचकारी भी है।
तो आइये दोस्तों ज्यादा समय न लेते हुवे शुरू करते है।
कलावंतिन दुर्ग कहाँ पर आया हुवा है ?
कलावंतिन दुर्ग भारत के महाराष्ट्र राज्य के रायगढ़ जिले में प्रबलगढ़ किले के पास पश्चिमी घाट में आया हुवा 686 मीटर (2250 फ़ीट) ऊँचा एक शिखर है।
यह मोहक दुर्ग प्रबलगढ़ किले के बिलकुल सामने के शिखर पर बना हुवा है।
जिसे मुंबई – पुणे राजमार्ग से स्पष्ट रूप से आप देख सकते हो।
इस शिखर को केल्वे टीन, कलावंतिनिचा सुल्का, या कलावंतिन शिखर के रूप में भी जाना जाता है।
यह शिखर ट्रेकिंग के सौखीनो के लिए एक बहोत ही सुंदर जगह है।
कलावंतिन दुर्ग का निर्माण क्यों किया गया था ?
किले को मराठी भाषा में दुर्ग कहा जाता है। लेकिन यहाँ पर शिखर पर कोई किला नहीं बना हुवा है।
इस लिए ऐसा माना जाता है की इसका उपयोग उस समय के शाशक द्वारा प्रबलगढ़ किले के आस पास के क्षेत्र पर नजर रखने के लिए बनाया गया होना चाहिए।
Kalavantin Durg History

Image Credit : Flickr
वैसे इस किले के इतिहास की बात करें तो बहोत ही काम जानकारी मिलती है।
यहाँ के स्थानीय गाइड बताते है की इस किले का निर्माण कलावंतिन नाम की रानी के लिए किया गया था।
इस लिए इस दुर्ग को कलावंतिन दुर्ग से जाना जाता है।
अब वास्तव में बात करें तो शिखर पर पहुँचने पर आप को कोई भव्य किला नहीं दीखता।
यहाँ पर किले की कुछ बनावट देखने को ही मिलती है। मतलब की यह कोई भव्य किला नहीं रहा होगा।
स्थानीय गाइड से ऐसा भी पता चला की इस किले का उपयोग उस समय के शाशक द्वारा आस पास के इलाके के ऊपर निगरानी रखने के तौर पर किया जाता था।
इतिहास के पन्नो में और ज्यादा पीछे जाएँ तो थोड़ी बहोत माहिती मिलती है वो कुछ इस प्रकार है।
कलावंतिन दुर्ग का इतिहास बिलकुल सामने की पहाड़ी पर आए हुवे प्रबलगढ़ किले के साथ जोड़ा जाता है।
इस प्रबलगढ़ किले को बहमनी सल्तनत के दौरान 530 ईसा पूर्व(BC) के आसपास बनाया गया था।
प्रबलगढ़ किला भी लगभग 2300 फ़ीट (685 मीटर) ऊँचे शिखर पर बनाया गया था।
1458 ईस्वी(AD) में इस किले को अहमदनगर सल्तनत ने अपने कब्जे में ले लिया था।
अहमदनगर राज्य के प्रधान मंत्री मलिक अहमद ने कोंकण की विजय के दौरान किले पर अधिकार कर लिया।
मुगलों ने संभाजी की मृत्यु के बाद कल्याण, महुली, करनाला और कई अन्य किलों के साथ प्रबलगढ़ पर अधिकार कर लिया।
इन शताब्दियों में इसे मुग़ल साम्राज्य द्वारा जीत लिया गया था और विभिन्न राजवंशो द्वारा लड़ी गयी लड़ाइयों का साक्षी रहा था।
बाद में इस किले का उपयोग 19 वीं शताब्दी की शुरुआत में स्वतंत्रता सेनानी उमाजी नाइक द्वारा एक गुप्त ठिकाने के रूप में किया गया था।
How to Reach Kalavantin Durg ?
By Train/Bus..
सबसे नजदीकी रेल्वे स्टेशन पनवेल है जो राज्य के कई बड़े शहरों से जुड़ा हुवा है।
वहां से ठाकुरवाड़ी गांव तक आप या तो राज्य परिवहन की बस ले सकते है और या तो कोई लोकल रिक्षा हायर कर सकते है।
By Car/Byke..
अगर आप कार ले कर आए हो तो पनवेल से करीब 15 किमी दूर आया ठाकुरवाड़ी गांव व्हीकल रखने के लिए बेस विलेज है।
जहाँ से आप को कलावंतिन दुर्ग तक पहुँचने के लिए करीब 1 घंटे की पैदल ही चढाई करनी होगी।
Kalavantin Durg Trail

Image Credit : Flickr (Ashish Nimgaonkar)
इस किले पर पहुँचने के लिए आप को सबसे पहले प्रबलमाची गाँव तक पहुंचना पड़ेगा।
पहाड़ी की तलहटी पर आए हुवे गांव ठाकुरवाड़ी से एक मार्ग प्रबलमाची तक पहुँचता है।
जो अच्छी तरह बनाया हुवा है।
अब इस बेस गांव ठाकुरवाड़ी से कलवंतिन दुर्ग की चोटी तक पहुँचने में आप को करीब 2 से 3 घंटे लग जायेंगे।
अब प्रबलमाची दोनों दुर्ग कलवंतिन और प्रबलगढ़ का बेस गांव है।
इस लिए आप को प्रबलमाची में रहने और खाने-पिने की व्यस्था मिल जाएगी।
प्रबलमाची से दाई और प्रबलगढ़ और बाई और कलवंतिन दुर्ग पड़ता है।
अब यहाँ से मुश्किल रास्ता शुरू होता है।
दोनों किलों की और पगदंडी ही जाती है। पक्का रास्ता नहीं है।
वास्तव में कलवंतिन किले का सही रोमांच यहीं से शुरू होता है।
आप को पगदंडी की मदद से सावधानी रखते हुए दुर्ग की और आगे बढ़ना है।
रास्ते में सर्पों और बिच्छुओं से खतरा है तो सावधानी रखनी बहोत आवश्यक है।
दुर्ग तक पहुँचने की रॉककट सीढियाँ इस दुर्ग की चढ़ाई को बहोत ही ज्यादा मुश्किल बना देती है।
लेकिन रोमांच के सौखीनो के लिए यह रास्ता बहोत ही सुंदर है।
इस चढ़ाई को चढ़ते हुए कुछ साहसिकों की पैर फिसलने की वजह से खाई में गिर जाने की वजह से मौत भी हो गई है।
इस लिए रोमांच के साथ सावधानी ही एक मात्र विकल्प है।
जिस जगह रास्ता ज्यादा मुश्किल और फिसलन भरा हो जाता है वहां पर एक रस्सी लगाई गई है।
जिससे आप को दुर्ग तक पहुँचने में मदद मिल सके।
कलावंतिन दुर्ग के ऊपर क्या देख सकते है ?
वैसे तो दुर्ग के ऊपर कोई भव्य किला नहीं है इस लिए खास कुछ भी नहीं देखने लायक।
एक खँडहर है। लेकिन आप इस दुर्ग के ऊपर से बहोत ही सुंदर नज़ारे देख सकते है।
कलवंतिन दुर्ग के शिखर से आप..
- पश्चिमी घाटों,
- प्रबलगढ़ किला,
- माथेरान पहाड़ी,
- इर्शालगढ़ किला,
- पेब,
- कर्नाला और चंदेरी किलों के साथ साथ मुंबई शहर को भी देख सकते हो।
मुख्य रूप से यहाँ पर प्रवासी इस दुर्ग तक पहुँचने के रोमांच का अनुभव करने और शिखर पर पहुँचने के बाद एक अदभुत शांति का अनुभव करने के लिए ही यहाँ पर आते है।
अगर आप एडवेंचर और शांति दोनों का एक साथ अनुभव करना चाहते हो तो आपको जरूर से यहाँ पर जाना चाहिए।
बस एक बात का ध्यान जरूर से रखिये की दुर्ग तक पहुँचने का रास्ता बहोत ही कठिन है।
क्या यहाँ पर किसी की मौत भी हुई है ?
तो दोस्तों में भी एक ट्रेकर हूँ और बताते हुवे दुःख हो रहा है की इसका जवाब हाँ है।
कलावंतिन दुर्ग आकस्मिक रूप से जाने के लिए जगह बिलकुल नहीं है।
इसकी खड़ी चढाई है, मार्ग संकरा है और भूभाग खुरदरा है।
पेशेवर या अनुभवी ट्रेकर्स की देखरेख में किले पर चढ़ना उचित है।
धीरे धीरे यह कलावंतिन दुर्ग युवाओं में ज्यादा फेमस होने लगा है। जिसके कारण यहाँ पर आने वाले ट्रेकर्स की संख्या बढ़ती जा रही है।
हालांकि, कई उत्साही लोग बिना किसी ज्ञान या अनुभव के सिर्फ रोमांच का अनुभव करने के लिए ही किले का दौरा करते हैं।
जिसके कारण कुछ दुखद हादसे घटित हो जाते है। जिनमे से कुछ इस प्रकार है।
1. कुछ समय पहले हैदराबाद की एक पर्वतारोही 27 वर्ष की रचिता गुप्ता कनोडिया, जो कलावंतिन दुर्ग और प्रबालगढ़ किले की यात्रा पर गई हुई थी।
लेकिन शायद पैर फिसलने के कारण वो 600 मीटर की ऊंचाई से निचे गिर गयी, जो 10 दिन बाद मृत पायी गयी थी।
2. चेतन धांडे नाम का एक 27 वर्षीय युवा लड़का कलावंतिन दुर्ग की चढ़ाई के दौरान 700 फुट के गोर्ज में गिर गया और बाद में वह मृत पाया गया।
ये सब बता के दोस्तों में आप को डराना नहीं चाहता लेकिन इसके बताने का ध्येय यह है की बिना सावधानी के यह किला चढ़ना बहोत ही खतरनाक है।
ट्रेकर्स की सुरक्षा के लिए कुछ प्रावधान है ?
जी हाँ। धांडे की मृत्यु के बाद स्थानीय प्रशासन ने ट्रेकर्स की सुरक्षा के लिए कुछ नियम बनाये।
जिसमें प्रवेश शुल्क ,गाइड व्यस्था शामिल है।
Rules..
- कोई भी ट्रेकर्स को सुबह 6 बजे से पहले और शाम 5 बजे के बाद इस क्षेत्र में प्रवेश की अनुमति नहीं है।
- प्रत्येक व्यक्ति अपने बारे में पूरी जानकारी देगा और प्रवेश शुल्क के रूप में 20 रुपये का भुगतान करेगा।
- किसी भी ट्रेकर या समूह को स्थानीय गाइडों के बिना किले में प्रवेश करने की अनुमति नहीं दी जाएगी और उन्हें प्रबलगढ़ के लिए 50 रुपये और कलावंतिन दुर्ग के लिए 50 रुपये का भुगतान करना होगा।
- ट्रेकर्स को प्लास्टिक की थैलियों या प्लास्टिक की बोतलों के इस्तेमाल पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया।
Kalavantin Durg Entry Timings & Fees
- Entry Fees : 20/- Per Person
- Guide Charge : 50/-
- Timings : 6:00 Am – 5:00 Pm
महारष्ट्र में आये हुवे कुछ सबसे कठिन ट्रेक
महाराष्ट्र में सह्याद्रि पर्वतमाला आयी हुई है। जिसमे कई पहाड़ियों पर कीलें बने हुवे है।
जिस पर चढ़ना आप को जीवनभर का यादगार अनुभव देता है।
तो आइये दोस्तों यहाँ पर में महाराष्ट्र में आए हुवे कुछ बेहद खूबसूरत लेकिन बेहद खतरनाक किलों के बारे में संक्षिप्त में जानकारी यहाँ पर देता हूँ।
इन में से कुछ के बारे में मैंने मेरी इस वेबसाइट में आर्टिकल शेयर किया हुवा है जिसकी लिंक में दे दूंगा। बाकि रह गए किलों के बारे में भी में आर्टिकल जरूर से लिखूंगा।
आगे चल कर में उसे यहाँ पर जरूर से अपडेट कर दूंगा। अगर आप ने मेरी इस वेबसाइट को अभी तक सब्सक्राइब नहीं किया हो तो जरूर से नोटिफिकेशनबेल दबा कर जरूर से सब्सक्राइब कर लीजिये।
Most Difficult Trek in Maharastra..
- Kalavantin Durg or Prabalgad, Raigad – 686 m
- Ungli Jaigad, Satara – 901 m
- Harihar Fort, Igatpuri – 1120 m
- Jivdhan, Pune – 1144 m
- Alang Fort, Nashik – 1371 m
- Rajgad Fort, Pune – 1400 m
- Torna Trek, Pune – 1403 m
- Harishchandragad, Ahmednagar – 1422 m
- Dhodap, Nashik – 1472 m
- Salher fort, Nasik – 1648 m
- Tailbaila Trek
- Vasota Jungle Trek
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